शापित अनिका: भाग १०

मि. श्यामसिंह ने सिड़ और विमला देवी को घर भेज दिया तथा वो और मिशा आशुतोष की देखभाल के लिये अस्पताल में ही रूक गये। सुबह जब आशुतोष की नींद टूटी तो टाइम आठ के ऊपर हो गया था। आशुतोष ने घर जाने की जिद की तो थक- हारकर मि. श्यामसिंह ने डॉक्टर से बात की। हालांकि डॉक्टर डिस्चार्ज देने के लिये तैयार नहीं थे, लेकिन काफी आरजू- मिन्नतों के बाद आखिरकार मान ही गये। डॉक्टर को मनाते- मनाते और पेपरवर्क निपटाने में करीब साढ़े दस बज गये।


मि. श्यामसिंह पेपरवर्क निपटाकर जैसे ही आशुतोष के कमरे में दाखिल हुये, उनके पीछे- पीछे ठाकुर विशम्भरनाथ को साथ लेकर अनिका भी पहुंच गई।


"हैलो मिस...." मिशा ने मुस्कुराकर अनिका का स्वागत किया। अनिका ने भी मुस्कुराते हुये मिशा के हैलो का जवाब दिया और ठाकुर विशम्भरनाथ का सबसे परिचय करवाया। मि. श्यामसिंह अनिका के बारे में जानते थे कि यही लड़की आशुतोष के साथ मिलकर अघोरा से लड़ने वाली है इसलिये गर्मजोशी के साथ ठाकुर विशम्भरनाथ से मिले।


"अब कैसी तबीयत है आपकी?" अनिका ने आशुतोष से पूछा।


"बस बढ़िया है।" आशुतोष ने हंसकर कहा- "इनफैक्ट डॉक्टर ने भी डिस्चार्ज दे दिया है।"


"रियली?" अनिका ने अविश्वास भरी नजरों से मिशा की तरफ देखा- "लेकिन अभी तो दो दिन भी नहीं हुये हैं और उस दिन तो...."


"डॉक्टर्स तो अभी डिस्चार्ज देने के मूड़ में नहीं थे, लेकिन इन्होनें घर जाने की जिद पकड़ ली तो बेचारों को डिस्चार्ज देना ही पड़ा।" मिशा ने चुगली की- "इनफैक्ट ये तो कल ही हॉस्पिटल से भाग निकले थे पर फिर से एक्सीडेंट हो गया और दुबारा एड़मिट करना पड़ा।"


"व्हट? आर यू गोन क्रेजी? कोई इतना इर्रिस्पॉंसिबल कैसे हो सकता है?" अनिका ने गुस्से, अधिकार, प्रेम और आश्चर्य के मिश्रित भाव से कहा तो सबके होंठों पर मुस्कुराहट तैर गई लेकिन आशुतोष ने अपराधी की तरह सिर झुका लिया।


"वो तो मैं कल ही हील हो गया था।" आशुतोष ने मदद की याचना करती आंखों से मिशा और श्यामसिंह की तरफ देखा लेकिन मिशा आज अलग ही मूड़ में थी। बोली- "हां- हां, ये तो सुपरहीरो है न! इनके घाव कुछ ही घंटो में अपने आप भर जाते हैं।"


"जब डॉक्टर लोगों को खुद हॉस्पिटल में रहना गंवारा नहीं है तो मरीजों का क्या हाल होगा?" अनिका उपहासपूर्ण हंसी हंसते हुये बोली- "इस देश का तो भगवान ही मालिक है। किसी को प्राइवेट वार्ड में भी तकलीफ है और किसी को सिंपल बेड़ भी अवेलेबल नहीं है।"


अनिका की बात सुनकर आशुतोष चुप ही रहा। हालांकि वो अनिका से अघोरा के बारे में बात करना चाहता था ताकि उसे उसके साथ समय बिताने का मौका मिले, लेकिन मिशा की बदौलत बात अलग ही ढर्रे पर चल पड़ी इसलिये उसे मिशा पर गुस्सा भी आ रहा था। लेकिन मिशा भी उसके मजे लेने के फुल मूड़ में थी। चिंगारी सुलगाते हुये बोली- "न जाने उन स्वामी जी ने शाप के बहाने क्या मंतर फूंक दिया कि इन्हें बस घर जाने की जल्दी है।"


मिशा ने बात कही तो थी कि अनिका से आशुतोष को डांट पड़ सके लेकिन अनिका को चुप देखकर उसे आश्चर्य हुआ। उधर ठाकुर विशम्भरनाथ मि. श्यामसिंह से बात कर रहे थे लेकिन शाप की बात सुनते ही उनके कान खड़े हो गये।


"कौन स्वामीजी और कैसा श्राप?" ठाकुर साहब ने चौंककर पूछा।


"वही.... जिसे आपका परिवार भी इतने सालों से भुगत रहा है।" आशुतोष ने कहा तो ठाकुर विशम्भरनाथ चौंक उठे। ठाकुर साहब को पता तो था कि देहरादून में कोई है जो अनिका की श्राप तोड़ने में मदद करेगा, लेकिन वो शख्स आशुतोष है, ये जानकर वो चौंक गये


ठाकुर विशम्भरनाथ को स्वामी अच्युतानंद ने बताया था कि अनिका के जीवन में वो कारक आ चुका है, जो या तो श्राप का अंत बनेगा या अनिका का और उन्हें ये भी पता है कि उसी शख्स ने अनिका की जान भी बचाई थी लेकिन उन्हें ये नहीं पता था कि वो शख्स आशुतोष ही है।


ठाकुर साहब को अच्युतानंद महाराज पर भरोसा तो था, लेकिन उन्हें लगा था कि मदद करने वाला भी कोई साधु-संत युवक होगा। वो अनिका को आशुतोष के साथ छोड़ने से पहले उसका परीक्षण करना चाहते थे इसलिये जब मिशा ने अनिका से साथ चलने की जिद की तो ठाकुर साहब भी आशुतोष को घर छोड़ने के बहाने उनके साथ हो लिये। घर पर विमला देवी ने आशुतोष का जोरदार स्वागत किया। शायद वो पिछले सत्रह सालों का दुलार एक बार में ही लुटाना चाहतीं थीं।


दिन- भर मिशा अनिका से चिपकी बातें करती रहीं और ठाकुर विशम्भरनाथ आशुतोष से चिपके रहे इसलिये आशुतोष को अनिका से बात करने का मौका ही नहीं मिला। शाम के करीब पांच बज रहे थे, जब सब लोग लॉन में बैठकर चाय- नाश्ते का लुत्फ उठा रहे थे। सिर्फ अनिका और आशुतोष के हाथों में कॉफी के मग थे।


"चलो इसी बहाने आपसे मिलने का सौभाग्य तो मिला।" ठाकुर साहब ने मि. श्यामसिंह से मुखातिब होकर कहा।


"अरे सौभाग्य तो हमारा है ठाकुर साहब कि आप जैसा एक दोस्त मिल गया।" मि. श्यामसिंह मुस्कुराकर बोले।


"मुझे समझ नहीं आता बेटा कि आपका शुक्रिया कैसे करूं?" ठाकुर साहब कृतज्ञता के साथ आशुतोष से बोले- "आपने अपनी जान खतरे में ड़ालकर हमारी गुड़िया की जान बचाई है। हम आपका ये एहसान कभी नहीं भूलेंगें।"


"अरे! इसमें एहसान कैसा अंकल जी? ये तो मेरा फर्ज था। और वैसे भी अब अनिका को मेरी जान बचाने के कई मौके मिलेंगें।" आशुतोष मुस्कुराया।


"और वैसे भी ये डॉक्टर लोग दरियाई घोड़े की कसम लेते हैं कि जान बचानी मुमकिन हो तो बचायेंगे।" अनिका ने मुस्कुराकर कहा तो सबने ठहाका लगाया लेकिन ठाकुर विशम्भरनाथ की कुछ भी समझ नहीं आया।


"फिर भी बेटा! तुम्हारा लाख- लाख शुक्रिया।" ठाकुर साहब ने आशुतोष का सिर थपथपाया और फिर मि. श्यामसिंह से मुखातिब होकर बोले- "अच्छा भाई साहब! अब आज्ञा दीजिये।"


"अरे! ऐसे कैसे भाई- साहब? आज हमें भी तो सेवा का मौका दीजिये।" विमला देवी हस्तक्षेप करते हुये बोलीं।


"आज नहीं भाभी जी!" ठाकुर साहब ठिठोली करते हुये बोले- "भवानीपुर के लिये पांच घंटे का रास्ता है और पहले ही देर हो चुकी है। अगर समय पर नहीं पहुंचा तो श्रीमती जी चिंता में घुलकर आधी हो जायेंगीं।"


"वैसे बात तो आपकी सही है। औरतें फ्री की चाट और टेंशन लेना नहीं छोड़ सकती!" श्यामसिंह हंसकर बोले तो विमला देवी ने उन्हें घूरा और ठाकुर साहब से बोलीं- "तो आप फोन करके उन्हें बता दीजिये।"


"बता तो देता, पर आज जाना जरूरी है।" ठाकुर साहब दुविधा में बोले- "श्रीमती जी की दवायें खत्म हो गईं हैं और कल मुझे भी एक जरूरी काम से बाहर जाना है और कागजात सारे हवेली में हीं है।"


"तब तो फिर रोकने का कोई तुक नहीं बनता।" मि. श्यामसिंह हार मानते हुये बोले- "हमारा तो उसूल है कि काम ज्यादा जरूरी है।"


"चलो अनिका! तुम्हें कमरे तक छोड़ता चलूं!" ठाकुर विशम्भरनाथ अनिका से बोले।

"अरे भाई साहब! अब कम से कम अनिका को तो हमारे साथ रहने दीजिये।" विमला देवी ने प्रतिवाद किया।


"हां ठाकुर साहब.... एक बात हमने आपकी मानी, अब एक बात आपको भी हमारी माननी पड़ेगी।" मि. श्यामसिंह ने भी विमला देवी से सहमति जताई- "अनिका भी हमारी बेटी जैसी ही है। हम उसे कोई तकलीफ नहीं होने देंगें।"


"ठीक है! आप अनिका से ही पूछ लीजिये।" ठाकुर साहब ने गेंद अनिका के पाले में ड़ाल दी।


"अब अनिका को भला क्या ऐतराज होगा?" विमला देवी ने प्यार से कहा- "क्यूं बेटा? हमारे साथ रहने में तुम्हें कोई दिक्कत तो नहीं?"


अनिका अब असमंजस में फंस गई। उससे न हां कहते बन रहा था न ना कहते। आखिरकार विमला देवी की जीत हुई और अनिका ने न में सिर हिलाते हुये कहा- "नहीं आंटी!"


"लो भाईसाहब! अब तो अनिका ने भी मेरी डिग्री कर दी।" विमला देवी हंसकर बोली- "अब तो आपको कोई ऐतराज नहीं?"


"अब मेरी बेटी को घर से दूर भी एक परिवार मिल रहा है तो मुझे भला क्या ऐतराज होगा?" ठाकुर साहब हंसकर बोले और विदा लेकर गेट की तरफ बढ़ गये।


* * *


"आपको खाने के लिये बुला रहें हैं।" अनिका ने आशुतोष से कहा।


दोनों इस वक्त छत पर खड़े चांद को निहार रहे थे। दिनभर अनिका मिशा और आशुतोष के साथ बिजी थी इसलिये उसे आशुतोष से बात करने का मौका ही नहीं मिला। मि. श्यामसिंह ने अनिका के लिये नया कमरा खुलवाया, पर मिशा की जिद पर अनिका उसके साथ उसके कमरे में ही रूकी थी जिससे उसे पीछा छुडाने का मौका ही नहीं मिला। वो आशुतोष को खाने के लिये बुलाने आई थी लेकिन उसे अकेला देख बातें करने लगी।


"हं.... आप चलिये, मैं कुछ देर में आता हूं।" आशुतोष को पता ही नहीं चला कि कब वो उसके बगल में आकर खड़ी हो गई थी।


"वैसे आप किसे याद कर रहे थे। अक्सर कहते हैं कि चांद में महबूब का अक्श नजर आता है।" अनिका ने आशुतोष को देखते हुये कहा।


"मां को...." आशुतोष ने फीकी हंसी हंसते हुये कहा- "जब मां गई तब मैं सिर्फ पांच साल का था। छ: महीने तक दादी इन तारों को दिखाकर कहती थी कि इनमें से एक मां है.... लेकिन फिर दादी भी इन्हीं तारों के बीच चली गई। उसके बाद हर रात को मैं यहां आकर रोता था क्यूंकि मुझे समझ ही नहीं आता कि मां कौन से तारे में है.... फिर कुछ साल बाद मिशा आई.... उसे देखकर लगा कि मां वापस आ गई है। एक दिन उसी ने मुझसे कहा था कि तारे तो आम इंसान बनते हैं लेकिन मेरी मां बहुत स्पेशल थी इसलिये वो तारों में नहीं बल्कि चांद के पास होगी क्योंकि इन हजारों तारों के बीच चांद भी तो स्पेशल है न!"


आशुतोष अक्सर इसी पल के बारे में सोचा करता था, जब अनिका उसके साथ, उसके पास हो और आस- पास कोई न हो, लेकिन आज जब मौका मिला तो उसकी हिम्मत जवाब दे गयी। उसके गले से शब्द ही नहीं फूट रहे थे। ये पहली बार था कि वो मिशा के अलावा किसी लड़की से अकेले में बातें कर रहा था।


"क्यूं?" कुछ देर की खामोशी के बाद अनिका ने पूछा। जहां एक ओर तो उसे आशुतोष का शर्माना और सीधापन अच्छा लग रहा था तो वहीं दूसरी तरफ खीज भी हो रही थी कि जब मैं लड़की होकर बातचीत की पहल कर रही हूं तो ये महाशय क्यूं भाव खा रहें हैं?


"ऐसे ही.... मां को याद करने के लिये भी कोई रीजन चाहिये?" आशुतोष ने कहा तो अनिका झेंपकर रह गई।


"जब पापा ने दूसरी शादी की तो मैं बहुत खुश था कि मेरे लिये नई अम्मां आ रहीं है लेकिन कुछ ही दिनों में दोनों का बिहेवियर बद से बदतर होता चला गया।" आशुतोष की नजरें चांद की तरफ ही लगीं थीं- "सब कहते थे और मुझे भी यही लगता था कि ये सब सौतेली मां की कारगुजारी है इसीलिये मैं पांचवी के बाद नवोदय स्कूल चला गया लेकिन अब पता चला कि वो सब तो मेरे ही भले के लिये था। वो ये सब कर रहे थे ताकि मैं जिंदा रहने के लिये लड़ने के काबिल बन सकूं। मुझे तो खुद पर शर्म आती है कि मैं कैसे इतना गिर गया कि मां- बाप को गलत समझने लगा। मैं कैसे अपनी मां की सीख भूल गया?"


"किसने कहा कि आप अपनी मां की सीख भूल गये हैं?" अनिका ने मुस्कुराकर कहा- "जो कुछ आपने सहा उसके बाद भी अगर आप एक सच्चे इंसान बने हैं तो अपनी मां के सीख के कारण। वरना इन हालातों में पड़कर तो कोई भी गलत रास्ते पर चल पड़ता। आपकी मां आज जहां से भी आपको देख रहीं होंगी, उन्हें आपपर गर्व होगा।"


आशुतोष ने अनिका की तरफ देखा तो उसकी आंखों में सहानुभूति और सच्चाई नजर आई। बिना कुछ बोले वो फिर से आसमान को ताकने लगा।


"वैसे आपको श्राप के बारे में कब पता चला?" अनिका ने मुद्दा बदलते हुये पूछा।


"जिस शाम को एक्सीडेंट हुआ था उसी रात को स्वामी शिवदास ने बताया था।"


"स्ट्रैंज...." अनिका बुदबुदाई- "उसी दिन पापा मुझे भी भवानीपुर ले गये और सुबह के वक्त स्वामी अच्युतानंद ने मुझे भी इस श्राप के बारे में बताया।"


"हां, अजीब तो है।" आशुतोष कुछ सोचते हुये बोला- "तुमको उनकी बात पर यकीन कैसे हुआ?"


"उन्होनें बिना बताये सीधे आपका नाम लेकर कह दिया कि उसने तुम्हारी जान बचाई है और वही श्राप को तोड़ने में मदद करेगा तो यकीन करना पड़ा। बाय द वे आप कैसे मान गये?" अनिका ने पूछा।


"शायद तुमको याद होगा...." आशुतोष बोला- "जिस दिन मैं देहरादून लौटा था, उसी दिन तुमने मेरी गाडी को टक्कर मारी थी।"


"हां, कुछ दिन पहले मैंनें किसी की गाड़ी ठोकी तो थी...." अनिका याद करते हुये बोली।


"उसी दिन से एक अघोरी मुझे सपनों में आकर मारने की कोशिश करता है और हैरानी की बात ये है कि उसके दिये जख्म जागने के बाद भी मेरे शरीर पर उभर आते हैं। वो सपने में तुम्हारा नाम चिल्लाता था।" आशुतोष परेशान होकर बोला- "तब तक तो मुझे तुम्हारा नाम भी पता नहीं था। उस दिन जब मिशा ने तुमसे मिलवाया तो मैं इसी उधेड़बुन में था कि कहीं वो अनिका तुम ही तो नहीं.... तभी वो एक्सीडेंट हो गया। इसके बाद जब स्वामी शिवदास ने बताया तो यकीन करना पड़ा।"


"तो अब आगे क्या करना है?" अनिका ने पूछा।


"पता नहीं!" आशुतोष ने गहरी सांस छोड़ी।


"लेकिन स्वामी अच्युतानंद ने तो कहा था कि आपसे मिलकर ये खोज शुरू होगी तो मुझे लगा कि आपको पता होगा!" अनिका परेशान होकर बोली।


"इस बात पर तुमको स्वामी जी के कान पकड़ने चाहिये।" आशुतोष ने मुस्कुराकर कहा लेकिन अनिका के माथे से शिकन की लकीरें कम नहीं हुईं।


"तुम चिंता मत करो, अभी हमारे पास बहुत वक्त है। तुम्हारे जो एग्जाम्स बचें हैं उनकी तैयारी करो। तब तक मैं कोई न कोई रास्ता ढूंढता हूं। पर अभी चलकर पहले कुछ खा लेते हैं।" आशुतोष ने भरोसा दिलाया और हंसते हुये छत से उतर गया। अनिका भी उसके पीछे- पीछे छत से उतर गई।



* * *



रात का तीसरा पहर था। चांदनी रात में पूरी घाटी नहाई थी। पहाड़ की चोटी के किनारे पर एक बूढ़े बरगद का पेड़ था, जिसके नीचे खड़ा आशुतोष हैरानी से हर तरफ चकराकर देख रहा था। आशुतोष को ये देखकर अचरज हुआ कि पहाड़ी के चारों तरफ गहरी खाई थी।


"ओह, तो मैं अघोरी भाई साहब का मेहमान हूं।" आशुतोष मन ही मन मुस्कुराया।


"अघोरा जी.... कहां रह गये राजगुरू? हमें मेहमान बनाकर आप लुका- छिपी खेल रहे हो?" आशुतोष ने आवाज लगाई।


अचानक पूरी घाटी का मौसम बदलने लगा। आसमान में चमकते शीतल चांद को असमय ग्रहण लग गया। पूरा आसमान कालिमामय हो गया। चांद तो दूर आसमान में सितारों का भी कोई निशान नहीं रहा। हर तरफ से काले धुंयें से बनी आकृतियां आशुतोष पर झपटने लगीं लेकिन उसके पास पहुंच नहीं पाई, इसलिये उसे घेरकर गोल- गोल चक्कर लगाने लगीं।


"क्या अघोरा जी? इन प्यादों से राजा को हराने चले हो?" आशुतोष हंसकर बोला- "लेकिन मुझसे निपटना इन प्यादों के वश की बात नहीं है।"


"शतरंज में अगर सिपाही आखिरी घर में पहुंच जाये तो राजा से भी ताकतवर हो जाता है मूर्ख!" शून्य से एक आवाज आई और अचानक आशुतोष को अपने गले पर एक अजीब एहसास हुआ। उसने पलटकर देखा तो पाया कि अघोरा पेड़ की एक ड़ाल पर उल्टा लटका था और उसके बाल आशुतोष की छाती को छू रहे थे। उसके पूरे बदन का मांस जलकर सड़ चुका था, जिससे रक्त और मवाद बह रहा था और पूरे बदन पर कीड़े रेंग रहे थे।


अघोरी का ये रूप देखकर एक बार आशुतोष की भी रूह कांप गई लेकिन तुरंत खुद को संभालते हुये वो पीछे हटा और हिम्मत जुटाकर हंसने लगा- "लेकिन तुम जानते हो अघोरा कि शतरंज के इस खेल में ये राजा अकेला नहीं है, मेरे पास अनिका नाम की रानी भी है और रानी की ताकत का अंदाजा तो तुम्हें भी होगा ही।"


"अनिका मेरी है...." अघोरा की आवाज इतनी तेज थी कि आशुतोष से हाथों से अपने कान ढंकने पड़े- "और ये कोई शतरंज नहीं है.... तुम अघोरा के सामने खड़े हो, जो इस धरती पर सबसे शक्तिशाली है।"


"गलतफहमी है तुम्हारी...." आशुतोष ने चिढ़ाया- "तुम भूल रहे हो कि मैं उसी लोहासिंह का वंशज हूं, जिसने तुम्हें कुत्ते की मौत मारा था। अगर इतने ही शक्तिशाली थे तो खुद को बचा क्यूं नहीं पाये?"


"क्योंकि हम शिव के पूजक थे और एक साधु थे...." अघोरा बोला- "परन्तु देखो.... आज तुम्हारे पूर्वजों के कारण हमारी क्या दशा हो गई है! हमने अपना सम्पूर्ण जीवन इस राज्य की सेवा में लगा दिया लेकिन तुम्हारे पूर्वजों के कुकृत्य के कारण हम पिछले हजार सालों से पिशाच योनि में भटक रहें हैं।"


"ये भी तुम्हारी गलतफहमी है अघोरा!" आशुतोष ने प्रतिवाद किया- "तुम इस योनि मैं अपने घमंड, गुस्से और कामांधता के कारण फंसे हो।"


"जो भी कहो.... लेकिन ये सब तुम्हारे पूर्वज ही हैं, जो आज हमारे अनुचर हैं और हमारी एक आज्ञा पर तुम्हारा काल बन जायेंगें।" अघोरा ने चारों तरफ घूमती काली आकृतियों की तरफ इशारा किया- "उसके बाद अनिका हमारी होगी और हम धर्मपाल सिंह और धूमसिंह की पूरी वंशावली को नष्ट कर देंगें।"


"न तो तुम्हें अनिका मिलेगी और न ही धूम्रपाद का शरीर...." आशुतोष दृढ़ स्वर में बोला- "तुम्हारे और तुम्हारे इरादों के बीच मैं हूं अघोरा और मेरे रहते तुम अनिका का बाल भी बांका नहीं कर पाओगे।"


"लेकिन जब तुम रहोगे न!" अघोरा मुस्कुराया।


"कमॉन मैन...." आशुतोष ने मजाक उड़ाते हुये कहा- "पिछली कितनी रातों से तुम मुझ पर रोज हमला कर रहे हो, लेकिन क्या उखाड़ पाये अब तक जो आज उखाड़ लोगे?"


आशुतोष की बात सुनकर अघोरा की आंखों में खून उतर आया। लाल आंखों से आशुतोष को घूरते हुये बोला- "चाहें तो इसी क्षण तुम्हें यमलोक पहुंचा दें लेकिन तुम्हें क्या लगता है? हम तुम्हें इतनी आसान मौत देंगें?"


"तू.... और मुझे मारेगा?" आशुतोष हंसा- "मजाक मत कर यार! तू भी जानता है कि तेरे वश की बात नहीं है लेकिन मेरे पास तेरे लिये एक ऑफर है। आज की रात मुझे मार सकता है तो मार ले, मैं कोई अडंगा नहीं अड़ाऊंगा लेकिन अगर आज मुझे नहीं मार पाया तो आज के बाद मेरे सपने खराब मत करना। मुझे सपनों में अनिका का इंतजार रहता है और पहुंच तुम जाते हो।"


आशुतोष के मुंह से अनिका का जिक्र सुनते ही अघोरा के सीने में सांप लोटने लगे। गुस्से में बोला- "ठीक है। अगर तुम्हें मृत्यु की इतनी ही चाहत है तो यही सही...."


अघोरा की बात सुनकर आशुतोष के चेहरे पर मुस्कुराहट तैर गई तो अघोरा भी मुस्कुराते हुये बोला- "तुम सत्य में वीर पुरूष हो, जो मृत्यु का स्वागत हंसते हुये करना चाहते हो।"


"कुत्ते की तरह भौंकना बंद कर और पहले मारकर तो दिखा...." आशुतोष ने चिढ़ाते हुये कहा तो अघोरा ने प्रचंड रूप धारण कर लिया। उसकी सुर्ख आंखों का रंग बदलकर काला हो गया। उसने पूरी ताकत के साथ आशुतोष की छाती पर लात जमा दी। आशुतोष पहले ही किनारे पर खड़ा था तो लात पड़ने के कारण संतुलन नहीं बना पाया और खाई में गिरने लगा, लेकिन उसके होंठों पर वही रहस्यमयी मुस्कान थी।


"विदा मेरे नन्हें शत्रु...." ऊपर चोटी पर अघोरा अट्टाहास कर रहा था।


* * *



आशुतोष चोटी से लगातार नीचे गिरता जा रहा था। ऊपर खड़े अघोरा का अट्टाहास उसके कानों में अब भी पहुंच रहा था। जमीन हरदम उसके करीब आती जा रही थी। यहां तक कि उसके होंठों की मुस्कान भी गायब हो गई।


"कमऑन यार नींद.... अब तो टूट जा। कहीं गलत पंगे तो नहीं ले लिये?" बड़बड़ाते हुये उसने हवा में ही सिर झुकाकर जमीन की तरफ देखा तो उसकी चीख निकल गई।


"भगवान जी.... बचाओ...." आशुतोष ने ड़र से आंखें मूंद ली, लेकिन उसका लगातार गिरना जारी रहा। जमीन पल- पल उसके पास आती जा रही थी कि तभी अचानक ये हुआ। उसे लगा मानों उसे गिरते- गिरते झटके लग रहें हैं। बड़ी हिम्मत के साथ उसने आंखे खोलीं और एक झटके के साथ उठ बैठा।


उसने हड़बड़ाकर अपने आस- पास नजरें दौड़ाई तो पाया कि वो अपने कमरे में था। उसके अगल- बगल मिशा और अनिका थी, जो चिंतित निगाहों से उसे ताक रही थीं। उसकी सांस चढ़ी हुई थी और पूरा शरीर पसीने से नहाया हुआ था। उसका दिल इतनी तेजी से धड़क रहा था मानों एक सेकेंड में हजारों मील दौड़कर आया हो।


"हू.... थैंक गॉड कि नींद टूट गई। आज तो मरते- मरते बचा।" उसके चेहरे पर राहत के भाव थे लेकिन अनिका और मिशा उसे घूरने लगे।


"तुम सठिया गये हो क्या?" मिशा ने चिढ़ते हुये कहा- "लगता है अघोरी के ड़र से तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है।"


"तुझे पता भी है कि आज मरते- मरते बचा हूं। अगर तुम लोग मुझे टाइम पर नहीं जगाते तो कल 'राम नाम सत्य है' के नारे लग रहे होते।" आशुतोष ने दोनों को सपने में अघोरा से लगाई शर्त के बारे में विस्तार से बताया।


"अब तो कोई शक नहीं कि पगला चुका है।" मिशा ने अनिका से फुसफुसाकर कहा लेकिन आवाज आशुतोष के कानों में भी पड़ गई।


"तुझे जो भी समझना है समझ, लेकिन आज के बाद मैं सुकून की नींद सोया करूंगा।" आशुतोष हंसकर बोला- "तुझे क्या पता कि हर रात सपने में एक भद्दे- जले हुये अघोरी से कुश्ती लडना क्या होता है!" कहते हुये आशुतोष ने अपनी बनियान उतारकर अपना सीना दिखाया, जिसपर अघोरा के पांव का निशान छपा था।


"ओह माय गॉड़...." अनिका ने विस्तारित नेत्रों और चिंतित आवाज में कहा- "अब तो मुझे भी सच में लगता है कि आपका दिमाग खराब हो गया है। अगर आपको कुछ हो जाता तो?"


"प्लान तो मेरा फुल- प्रूफ था...." आशुतोष बड़बड़ाया- "आज तक जितनी भी बार वो कोई घातक हमला करता तो मेरी नींद उचट जाती लेकिन आज पता नहीं क्यूं.... अगर तुम लोग नहीं उठाते तो सच में टिकट कट जाना था।"


"लेकिन क्या अघोरा का कुछ भरोसा है?" अनिका ने परेशान होकर पूछा- "अगर उसने फिर से हमला किया तो?"


"वो तो उसने करना ही है...." आशुतोष मुस्कुराकर बोला- "उसने सिर्फ सपनों में न आने का वादा किया है लेकिन अभी श्राप तो खत्म नहीं हुआ न!"


"लेकिन तुम्हें इतना यकीन कैसे है कि अघोरा अब तुम्हारे सपनों में नहीं आयेगा?" मिशा ने पूछा।


"अरे उस दूसरी दुनिया में भी जुबान की कोई कीमत तो होगी?" आशुतोष मुस्कुराकर बोला- "अगर वो जुबान से फिरा तो उसकी अपनी दुनिया में क्या इज्जत रहेगी?"


"तुम अघोरा के बारे में जानते ही कितना हो?" मिशा गुस्से में बोली- "बिना कुछ समझे- बूझे बस आग में कूद पड़े।"


"और दूसरी दुनिया के नियम आप कैसे जान सकते हैं?" अनिका ने भी मिशा का समर्थन किया।


"अरे ट्रस्ट मी यार!" आशुतोष झुंझलाकर बोला- "मैंनें कहीं पढ़ा था कि आत्माएं वादा करके तोड़तीं नहीं है। तुम अपने पैपर निपटाओ और मैं तब तक अघोरा से निपटने का प्लान बनाता हूं। वैसे भी अब अगर वो दिमाग में नहीं आयेगा तो मैं अच्छी तरह कॉन्सनट्रैट कर पाऊंगा।" 


मिशा और अनिका को अब भी यकीन नहीं आया लेकिन वो आशुतोष की खुशी में खलल नहीं ड़ालना चाहते थे इसलिये चुपचाप कमरे से बाहर चले गये।


"आखिरकार इतने दिनों के बाद चैन की नींद सोऊंगा...." कहकर आशुतोष फिर से बिस्तर पर पसर गया।


* * *




अगले कुछ दिन बड़े आराम से बीते। अनिका के बॉटनी के दो पैपर बचे थे, जिनकी तैयारी से उसे फुर्सत ही नहीं मिली और आशुतोष के सपनों को भी अघोरा से मुक्ति मिल चुकी थी इसलिये वो अब उस तरफ से बेफिक्र हो चला था।


आज अनिका की आखिरी परीक्षा भी खत्म हुई। शाम के करीब सात बज रहे थे, लेकिन दिन बड़े होने के कारण अभी तक अंधेरा नहीं हुआ था। आशुतोष और मिशा उसे कॉलेज से घर ला रहे थे, लेकिन रास्ते में मिशा ने आइसक्रीम की जिद पकड़ ली इसलिये तीनों आइसक्रीम लेकर गांधी पार्क में टहलने लगे। मिशा को अपनी स्कूल- फ्रेंड दिख गई तो वो उसके साथ हो ली, ताकि आशुतोष अनिका के साथ कुछ वक्त बिता सके। उस रात के बाद से दोनों में कोई बात ही नहीं हुई थी।


"आप कोई हॉस्पिटल क्यूं नहीं ज्वाइन कर लेते?" चलते- चलते अनिका ने पूछा।


"सोच तो रहा था लेकिन तब तक इन बाबाओं के चक्कर में फंस गया।" आशुतोष ने सामान्य बने रहने का प्रयास किया। हालांकि इतने दिनों से अनिका उसके घर में ही रह रही थी, लेकिन अब भी उसमें उससे अकेले बात करने की हिम्मत नहीं थी।


"तो अब आगे का क्या प्लान है? इन सब झमेलों के बाद?" अनिका ने एक खाली बेंच पर बैठते हुये पूछा।


"या तो एम. ड़ी. करूंगा या फिर कुछ दिन किसी हॉस्पिटल को ज्वाइन करूंगा और फिर सोच रहा हूं किसी गांव में जाकर बस जाऊं। वहां लोगों का इलाज भी करूंगा और नेचर के करीब भी रहूंगा।" आशुतोष ने अपनी मंशा जाहिर की।


"ख्याल तो अच्छा है लेकिन देहरादून में क्या खराबी है?" अनिका ने मुस्कुराकर पूछा- "पेड़- पौधे तो यहां भी खूब हैं। और फिर गांव में कमाई भी कुछ खास नहीं होगी।"


"हां, सो तो है.... आशुतोष भी मुस्कुराया- "लेकिन मुझे थोड़ा बहुत गांव वालों का आइड़िया है। गांव में शहरों की तरह सिर्फ ऑफिशियल रिलेशन नहीं होते!"


"लेकिन मिशा जाने देगी?" अनिका ने शंका जाहिर की।


"उसकी शादी तक तो जाना मुश्किल ही है.... उसके बाद में देख लेंगें।"


"वो तुम्हारा बड़ा ख्याल रखती है।" अनिका ने मिशा की तरफ देखा जो कुछ दूर अपनी दोस्त के साथ बातें कर रही थी।


"हां, कभी- कभी लगता है कि वो मेरी छोटी बहन नहीं बल्कि मेरी मां है।" आशुतोष हंसकर बोला- "सच में.... अगर वो नहीं होती तो मैं भी हरिद्वार जाकर बाबा बन गया होता।"


"तो.... अघोरी से निपटने का कोई प्लान बनाया? अब तो मेरे एग्जाम्स भी खत्म हो गये।" अनिका ने टॉपिक बदला।


"नहीं.... एक्चुअली एक दिक्कत है।" आशुतोष ने सिर झुकाकर कहा।


"क्या?"


"एक्चुअली मैंनें बहुत ढूंढा तो बदलगढ़ की लोकेशन तो मिल गई है लेकिन कांडगढ़ का कोई सुराग नहीं लग रहा।" आशुतोष बोला- "मैं सोच रहा था कि क्यूं न एक बार स्वामी शिवदास से बात कर लें.... क्या पता उन्हें कुछ पता हो?"


"हम्म.... सही है।" अनिका बोली- "लेकिन स्वामी जी मिलेंगें कहां?"


"पापा को पता होगा।" आशुतोष ने जवाब दिया।


"तो फिर कल ही अंकल से पूछकर स्वामी जी से मिलेंगें। जितनी जल्दी ये बला टले, उतना ही अच्छा।" अनिका ने दृढ़ स्वर में कहा और आशुतोष को चलने का इशारा किया। आशुतोष ने भी मिशा को आवाज लगाई और तीनों गाड़ी की तरफ बढ़ गये।



* * *



क्रमशः




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3 Comments

BhaRti YaDav ✍️

29-Jul-2021 04:37 PM

Nice

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🤫

25-Jul-2021 01:24 AM

क्या बात है रहस्य और रोमांच का दिलचस्प संगम देखने को मिल रहा है कहानी में..लेकिन क्या ये भाग अधूरा है

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ध्यान दिलाने के लिए धन्यवाद... टेक्नीकल इश्यू था तो पार्ट पूरा अपलोड नहीं हुआ और मैंनें भी ध्यान नहीं दिया।

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